भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फाइलों मे छिपा दिया पानी / विनय कुमार

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:37, 25 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय कुमार |संग्रह=क़र्जे़ तहज़ीब एक दुनिया है / विनय क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फाइलों मे छिपा दिया पानी।
पूछते हो कहाँ गया पानी।

हमने डाली थी जान की बाती
तुमने डाला दिया-दिया पानी।

चांद चुपचाप झील में उतरा
मछलियों नें हिला दिया पानी।

वो मगरमच्छ क्या बताएगा
किसने किस घाट का पिया पानी।

काम सुइयाँ वहां नहीं करतीं
पानियों को करे सिया पानी।

आप उस पर बयान लिखते हैं
जिस वरक़ का है हाषिया पानी।

पांव के ज़ख्म का मज़ा देखो
मैंने पांव से चख लिया पानी।