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बच्चे चुरानेवाला / रणजीत साहा / सुभाष मुखोपाध्याय

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हमारे मोहल्ले में उस दिन बड़ी अफ़रा-तफरी थी, बड़ा हंगामा मचा।
शोरगुल के बीच जैसे ही यह सुना गया:
‘बच्चे चुरानेवाला...उठाईगीर...पकड़ो...’
कि हम सब लाठी-सोंटा लिये और आस्तीन चढ़ाये
तुरत फुरत बाहर रास्ते पर निकल आये।

अलीपुर जानेवाली ट्राम पर लपककर चढ़ने के पहले
काले कोट में, कुछ अजीब-से दीखनेवाले एक सज्जन ने
आँखों पर चढ़ा चश्मा माथे के ऊपर खिसकाया,
और कहा, ‘विश्वास न हो तो देखिए यह अखबार
इसमें सबकुछ छपा है।’

तब मेरे-जैसे ही कुछ लोग अख़बार पर एक साथ झपटते हुए
होंठों को थूक से गीला करते हुए और हिज्जे लगाते हुए-
उस ख़ास खबर का एक-एक हरफ़ पढ़ने लगे
हाँ, ठीक ही तो लिखा है एकदम सही लिखा है
छापे के मोटे-मोटे अक्षरों में एकदम साफ़-साफ़
अरे तुम्हें दीख नहीं रहा। लो देखो यह रहा...यहाँ।

छपा है...? सचमुच लिख दिया गया है? फिर जाएगा कहाँ?
हम सब तो डण्डा उठाये उसके पीछे टूट पड़े थे।
उसके बालों को मुट्ठी में कसते ही हमारी हथेली में
सन से बुनी जटा आ गयी
और उसके लम्बे चोगे के नीचे से
निकली बच्चों को धर पकड़कर ले जानेवाली वह झोली भी।
अरे सर्वनाश! पता है?
उसकी झोली में से और क्या-क्या निकला?
देखे बिना शायद आपको विश्वास नहीं होगा।
उनमें से निकला एक मृतक का खप्पर,
छोटे बच्चों के जूतों की जोड़ियाँ, घुँघरू जड़ी कमरधनी, रबर की गेंद,
औरतों के इस्तेमाल की दो एक चीजें, और
पं. ईश्वरचन्द्र विद्यासागर लिखित वर्ण परिचय की प्रति।

उस गंजे आदमी को पीट-पीटकर बेदम किये जाने के बाद
फ़ौरी तौर पर और बिना किसी का पक्ष लिये छान-बीन करने पर
जिस बात का पता चला, वह कुछ इस प्रकार था:

वह आदमी बच्चे तो नहीं चुराया करता था लेकिन परले दर्जे का ठग
ज़रूर था। भले ही वह साधु का स्वांग रचाये था लेकिन था एक
लड़की का बाप। उसके एक बेटा भी था। लेकिन हाट-बाजार में
ख़ून-पसीने वाली कमाई के डर से, इस गुखौके का बेटा मार खाता रहा,
पर दो अक्षर पढ़ नहीं पाया।

उस दिन हम लोगों में से, जिन्होंने उसकी
लात-घूँसे-जूते-चप्पल-डंडे-सोटे से भरपूर पूजा
की थी, और बड़े खुश भी हुए थे। कुछेक शोहदों को
छोड़ दें तो बाकी लोगों के लिए मामले को समझे बिना
यह इतना दुःखदायी ही नहीं, बल्कि
आतंक की वजह भी बना-
बात यह थी कि
जो लोग बातों को समझे बिना
आये दिन अख़बार भर देते हैं-वे भले ही अपने-अपने कार्यक्षेत्र में
बड़े तीसमार ख़ाँ हों-धर्मावतार युधिष्ठिर तो नहीं!