भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बर्लिन की दीवार / 21 / हरबिन्दर सिंह गिल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:07, 18 जून 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पत्थर निर्जीव नहीं हैं।
वे भविष्य वाणी भी करते हैं।

यदि ऐसा न होता
बढ़ती जनसंख्या का
मानव को बोध न हो पाता
क्योंकि बढ़ते महानगरों
के आकार ने
चिंता में डाल दिया है
आने वाले हर कल को
कि रोक दो
इन पत्थरों का प्रयोग
नित नये घर बनाने के लिये।

और क्यों न
एक ही घर में
एक ही छत के नीचे
अपने एक बच्चे के साथ
जीने मरने की आदत डाल लें।

-सवाल पत्थर की कमी का नहीं
कि घर और नहीं बन सकते
मगर सवाल है
उस छत के नीचे रहने वालों को
दो वक्त की रोटी देने का।

तभी तो बर्लिन दीवार के
ये ढ़हते टुकड़े पत्थरों के
कर रहे हैं भविष्य वाणी
जैसे नित नये
घर बनाना उचित नहीं
वैसे ही
नये देश बनाना हितकर नहीं।