भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बहर-ऐ-तबील / हीर-रांझा / मेहर सिंह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:40, 15 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मेहर सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatHaryan...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिलकै दगा करी मेरे संग मैं तखत हजारे से मुझको बुलाना नहीं
अगर बुला भी लिया दिल मिला भी लिया तुझे अटखेड़ां में जाना नहीं था।टेक

सिर जाता कटा पाछै भेद पटा
तेरी यारी के अन्दर ये बन्दा लुटा
बता किस के कहने से दिल का प्रेम हटा
तनै लगे दिल को दूर हटाना नहीं था।

पहलें कहंू था तुझे तेरे बालों में मोती सजे
शान-ओ-शोकत में भर कर लेती मजे
ये खबर पहले नहीं थी मुझे, कि इतनी परेशानी होगी तुझे
तनै ऐसा धोखे का तीर चलाना नहीं था।

मेरा चलता ना जोरा, तेरा रंग रूप हुश्न भी गोरा
कंटीली आंख मैं स्याही का डोरा थी तूं चन्दन का पोरा
तनै चिपटे विषियर को दूर भगाना नहीं था।

भेजा कै द्यूं शरन, आया करकै प्रन
तेरी यारी मैं मुझ बन्दे का मरन
कहै मेहर सिंह छन्द के मिले बिना कुछ गाना नहीं था।