भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बहु नायक हौ सब लायक हौ सब प्यारिन के रस को लहिये / रघुनाथ

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:50, 15 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रघुनाथ }} <poem> बहु नायक हौ सब लायक हौ सब प्यारिन के ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहु नायक हौ सब लायक हौ सब प्यारिन के रस को लहिये ।
रघुनाथ मनैँ नहिँ कीजै तुम्हे जिय बात जु है सु सही कहिये ।
यह माँगति हौँ पिय प्यारे सदा सुख देखिबे ही को हमैँ चहिये ।
इतने के लिये इत आइए प्रात रुचै जहाँ रात तहाँ रहिये ।


रघुनाथ का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।