भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिन देखे नञ मिलतो / कैलाश चौधरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:19, 26 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एही जिनगी में
जिनगी के आनन्द हो
बहार नञ हो भीतर हो
भीतर जाके देखऽ
बाहर घूमते रह जईबऽ
नञ मिलतो
भीतर जाके खोजऽ
मिल जइतो।
ई हाथ से बटोरे के चीज नञ हो
साधन-भजन जे चीज हो
जदि चाहऽ हऽ तो सदगुरु से
साधन के औजार ले ला
नाम ही औजार हो
नाम ही छेनी, गंयतीं कुदार हो
नाम ही औजार से
अपन अन्दर खोदऽ
जेतना खोदबऽ ओतना मिलतो
बिन खोदले नञ मिलतो
आज-कल करते मत रहऽ
नञ तो जिनगी अइसही गुज़र जइतो
सोचऽ मत
भजन-सुमिरन से
अपन अन्दर जाके देखऽ
आनन्द ही आनन्द हो