भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुतरु आरो विनती / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:11, 10 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=बुतरु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दू-दू गो रसगुल्ला दे
केला छिलका खुल्ला दे
लेमनचूस के गोली दे
पन्नी ओकरोॅ खोली दे
दूध-दही के कुल्ला छी
हम्में बुतरु फुल्ला छी ।