भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेचारा मर्द / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:44, 21 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उज्ज्वल भट्टाचार्य |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मां के गर्भ से निकलने के बाद से ही
वह परेशान है
छूट चुका है
उसका बसेरा
जहां उंकड़ू मारकर
घर जैसा महसूस किया जा सके
अब हाथ-पैर फैलाने हैं
धरती-आसमान-समंदर
हर कहीं बनाने हैं बसेरे
डाह भरी नज़रों से
वह देखता है औरत को
उसे बसेरे नहीं बनाने हैं --
बसेरा बनना है !