भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेरोजगारी / कुमार अनुपम

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:33, 8 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार अनुपम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क.
 
उसके पास जिंदा रहने का सही तर्क है
इसीलिए
उसकी जिंदगी का बेड़ा गर्क है।
 
ख.
 
जिस देश में
नमक
दवा
पानी
और घर
के लिए भी लगता हो ‘कर’
बिना करते हुए कुछ
वहाँ गुजारा तो मुश्किल है सचमुच
 
फ.
 
कारणों के अनगिन कोणों से
सन्न सन्न
प्रश्न आते थे
जाने किस भीड़-प्रतिरोध की आशा में
कुछ न करने वाले जाने क्यों
निवारण के लिए
एक अपना भी हाथ नहीं उठाते थे
 
ब.
 
शक्ति विस्तार की परंपरा में
जबकि हो रहे थे समझौते
वार्ताएँ हो रही थीं
हाथ मिल रहे थे
हो रहे थे दस्तखत और गठबंधन लगातार
 
इस परंपरा पर
कुछ सिरफिरों ने एक बार
फिर थूका
खखार खखार
 
भ.
 
खताएँ तो कीं
जिनसे दुखी थे कुछ सज्जन जो
और दुखी हुए
और भी हुए दुखी कि हमने
भरोसा करते हुए हाथों पर अपने
जिंदा रहने
की खता करने
का फैसला किया आगे भी