भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भइले भिनुसारे, मुरुगा देले बांगे / भोजपुरी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:24, 24 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=थरुहट के ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भइले भिनुसारे, मुरुगा देले बांगे, भइंसी तुरावे जोरी-छाने।
भइंसी-धन बेंची, प्रभु गइया, धन कीनीं; हम्मे-रउवे सूतब अनचीते।।१।।
बोलिया त बोलेली बोलिया कुबोलिया हे,
अइसन बोली धनि तुहुँ जानि बोलिह, जोरिया बँटइबों सब साठ हो।।२।।
कवने तोरे कूटिहें, कवन तोरे पीसिहें, कवने भरिहें घइला पानी।
केही तोरे पीठ लागी सूतिहें, केही दीहें बोलचारी।।३।।
माई मोरे कूटिहें, बहिनि मोरे पीसिहें, चेरिया भरिहें घइला पानी
अलख जे चेरिया जे पीठी लागी सूतिहें, बँसिया दीहें बोलचारी हे।।४।।
माई तोरे अन्हरी, बहिनि दूर सासुर, चेरिया के देबों बनवास हे
अलख लउरिया प्राभु चुल्ही में धुसरबों, बँसिया के देबों धुधुआय हे।।५।।