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भजन / निकिफ़ोरॉस व्रेताकॉस / अनिल जनविजय

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ऐसे भी दुख हैं
जिनके बारे में कोई जानता नहीं ।
ऐसी हैं कन्दराएँ,
जहाँ धूप कभी पहुँची नहीं ।
जहाँ होठों पर छाया है बर्फ़ीला सन्नाटा ।
गवाह चुप हैं। आँखें ख़ाली।
  
कोई इतनी लम्बी सीढ़ी
नहीं बनी अब तक
उन गहराइयों में उतर सके जो,
जहाँ पहुँच जाती हैं मानव भावनाएँ ।

जब यह मौन फूटेगा
होगा महाविस्फोट,
और मिल जाएगी ज़ुबान
हमारी इस दुनिया में चुप खड़े पेड़ों को ।

रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय