भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भोर होती है उनकी सुनहरी नहीं / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:47, 4 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=आस क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भोर होती है उन की सुनहरी नहीं।
जिन की सीमा पर होते हैं प्रहरी नहीं॥

वक्त बहती नदी है गुजर जायेगा
है लहर तो किनारे पर ठहरी नहीं॥

यूँ समन्दर को कहते हैं गहरा बहुत
भावना से कोई चीज़ गहरी नहीं॥

जो असम्भव उसे कौन सम्भव करे
रात आधी में होती दुपहरी नहीं॥

हर कदम पर निगाहों के पहरे लगे
जिंदगी होती गूंगी या बहरी नहीं॥