भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मउजे मिश्रवलिया जहाँ विप्रन के ठट्ट बसे / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:17, 22 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मउजे मिश्रवलिया जहाँ विप्रन के ठट्ट बसे
सुन्दर सोहावन जहाँ बहुते मालिकान है।
गाँव के पश्चिम में बिराजे गंगाधर नाथ
सुख के सरूप ब्रह्मरूप के निधाना है।
गाँव के उत्तर से दक्खिन ले सघन बाँस
पुरूब बहे नारा जहाँ काहीं का सिवाना है।
द्विज महेन्द्र रामदास पुर के ना छोड़ों आस
सुख-दुख सभ सहकार के समय को बिताना है।