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मन्दिरां म्हं मुस्टण्डे बैठे उतां का ठीक गुजारा देख्या / मेहर सिंह

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जगन्नाथ म्हं पहोंच गया लोगां का ढंग न्यारा देख्या
मन्दिरां म्हं मुस्टण्डे बैठे उतां का ठीक गुजारा देख्या।।टेक

जिसनै पोप कहैं थे हरी,
कुछ पत्थर कुछ मिट्टी निरी
एक पत्थर की तस्वीर धरी, कहैं स्वामी जी म्हारा देख्या।

मैं बेईमान किसे नैं ना बुझया,
मीत मिल्या ना जगत म्हं दूजा
मूर्तियां की करते पूजा, माणसां का लारा देख्या।

कोए ऋषि कहै कोए ब्रह्मचारी,
जिसनै पूजै थी दूनियां सारी
कृष्ण जी का भगत पुजारी, मनैं रिश्वत का प्यारा देख्या।

चाहिए थे राम नाम के जपणें,
ये नहीं भेद छीपाएं छुपणें
मेहर सिंह अपणे मतलब के, सब दूनियां जग सारा देख्या।