भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मलेथा की कूल / देवरानी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:17, 6 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवरानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGadhwaliRa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धौली<ref>एक नदी</ref> का छाला<ref>किनारे</ref> पले किनारो,
ऊँचा माँगै मलेथो<ref>एक जगह</ref> को सेरो
एक दिन छयो रुखो मलेथो
एक दिन छयो भूखो मलेथो
कोदो गत्थू को गौं छयो
सटी नी नऊं को होंद छयो

दूर बटि<ref>से</ref> ब्वारी मुंउ मुं गैठी
लादी छै पाणी पीणू कू तैंई

तबी की बात तख रैंद छयो
माधू भण्डारी मासूर छयो
दूर तैं मानता जैकी छयी
राज दरबार मा धाक छयी

एक दिन माघू कोसू चल्यूं
राज दरबार बटी ए थक्यंू

भूख की ज्वाला छै पेट लागी
खाणू को रोटी, भावी मा मांगी
रोटी त छैंचा पर साग नीच
बोली भावी ला चटणी बी नीच
लूण अर मिर्च पीसिका ल्हौ
उनि खै ल्यूं लो द्वि रोठला घौं

बोले माधू ना भावी कू तैंयी
भावी स्या लूण सिपणू कू गैयी

जरा अबेर<ref>देर</ref> भावी कू ह्वेगे
माधू कू कोध की ज्वाला लैगे
मिलता समझे भावी जी कखे
त्वे पर जलड़ा जकड़ी का लगिगे

तान मा ताना भावी ला धाया
एक की द्वी तैंला सुणाया

गै छौ वं क्यारी मी मिर्च ल्हांणा
गोबी छन जख आलू लगाणाँ
कूल ल्हैं त्यारो कूल्याँदो क्यूँ
पाणी ल्है त्यारो पणचाये क्यूँ

क्यारी की क्यारो उख प्याज की छै
पुँगड़ी<ref>खेत</ref> पालिंगा अर मेथी की छै

पाणी का घट्ट जख धुरकदा छन
जौंल मगरा बी धदकदा छन

माधो भण्डारी का नाम लागे
छत्रि छौ वेको अभिमान जागे

माधू ठाकुर उतड़ीण बैठे
भावी कू रोष मा बोली बैठे
तूयी ल्ही औंदी घौं कूल गाड़ी
तुयी ल्ही औंदी घौं गाड बाँधी

मित्र वटि भावी को क्रोध बाढ़े
भैर मुसकैक बोलण बैठे

त्यारा रौंदा जी मिल कूल ल्हाणा
तवै छौंदा जी मिल हौल बाणा

ता बुवा माधू धिकार त्वेकू
ता चुचा माधू, छुछकार त्वेकू

जोंगा मूँडीका विन्दी लगौ तू
स्युंद गाडी का भिंटुली बणौं तू
वीर क्या जैमा बबराट नीच
‘स्यू’ क्या जैमा घुघराट नीच

भावी का ताना तानौ की बात
बज्र सी पोड़ी माघो का माथ

साबली कूटली गैंती फौड़ो
धैरी काँदमा दाथी कुल्हाड़ो
कूल खणणू कू अब जाण बैठे
जोश का बोल बोलणा बैठे

गणपती भूमिया देवी की जै
जन्म भूमि गढ़माता की जै

ब्यूंत कूली को अब दिखणा बैठैो
रौल्यूं रौल्यू माधो जाणा बैठो

साबली बजणी च खणाखण...॥
धमकदा फौड़ो तैको दनादन...॥

गैंती चलदी च जश तीर होवा
कूटी वा जनो शमशीर होवा

चल्दा पैनी कुलाड़ी चटाचट
डालौं तैं काटी धोल्दा खटाखट

छीना चट्टान का चूरा-चूरा
खणी चट्टाणू का बूरा-बूरा
ऐगे भंडारी स्वरंग क्वरदा
दाँती अंखेड़ सी फोड़द-फोड़दा

माधू का एक नौन्याल छयो
शेर को पूत हूँणयाल छयो

जैं जगा डांडा<ref>पहाड़</ref> सोरंग कोरी
तख बटी खन्द एक भारी पोड़ी
माधो का नौना का मूंड लैगे
फोड़ि बरमंड का खंड कैगे

असगुनी कूल स्या अपजसी रै
सिरगतो बाल की जैला बलि ल्हे

चित्त माधो को बैंरागी ह्वेगे
ज्ञान की जोत चमकणा लैगे
बीरु तैं शोक नी करणो चेंदो
तैथैं मिरतू मा नी रोण चैंदो

रौऊ को बांध माधू ला खोले
माई गंगा की जै बोले, बोले

पाणी खकलाट गगलाट कैकी
छल्की छल्की का फकप्याट कैकी

माधो की कृती यश गाँदा-गाँदा
आज तैं कूल तख बग्द जांदा

शब्दार्थ
<references/>