भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मस्त मलंग अकेला / आनंद कुमार द्विवेदी

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:01, 18 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिस अकेलेपन को
जीवन भर कोसता रहा
दुख मनाता रहा जिसका
वही अब सुख है
अमृत है,
नहीं होता जब कहीं कोई
पसरता है मीलों सन्नाटा
छूट जाती है दुनिया पीछे
छूट जाता है सारा कारोबार
सपने, आशाएँ
उदासियाँ निराशाएँ … भय
सब के सब
तब
अचानक आकर तुम्हारा अहसास
लिपट जाता है रूह से मेरी
मैं जीता हूँ तुमको …पा लेता हूँ खुद को,
निपट तन्हाई में तुम और मैं
आख़िर यही तो थी मेरी कल्पना
युगों से
जन्मों से,
एक सोच
एक जीवन
और एक दुनिया,
जादूगर!
तुम चाहो तो क्या नहीं बदल सकते !!