भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मस्ती के फाग / शशिकान्त गीते

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:05, 31 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशिकान्त गीते |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डाल कर के
पेट में महुए की आग
खेलते हैं कोरकू मस्ती के फाग

भूल कर
भूख के हैं, सारे लफड़े
पहनकर सूद के ये मोटे कपड़े
निचुड़ी योजना के
छेड़े हैं राग

फागुन
के रंग रंगे सूखे पलाश
धरती पर पाँव धरे आँखों आकाश
अपनी चादरिया लें
औरौं के दाग़

भूत न
भविष्यत ही रखें आसपास
कल थे कल फिर से हों शायद उदास
बेफ़िकरे ना आगे ना
पीछे लाग