भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माय चली कैलाश को / निमाड़ी

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:04, 19 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=निमाड़ी }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

     माय चली कैलाश को,
     आरे कोई लेवो रे मनाय
(१) पयलो संदेशो उनकी छोरी न क दिजो
     आरे दूजा गाँव का लोग....
     माय चली...

(२) तिसरो संदेशो उनका छोरा न क दिजो
     चवथो साजन को लोग....
     माय चली...
(३) हरा निला वास को डोलो सजावो
     उड़े अबिर गुलाल....
     माय चली...

(४) कुटुंब कबिलो सब रोई रोई मनाव
     आरे मुख मोड़ी चली माय....
     माय चली...

(५) बारह बोरी की उनकी पंगत देवो
     आरे उनकी होय जय जयकार
     माय चली...