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माय रोॅ करजा / प्रदीप प्रभात

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समाज सेवा, साहित्य सेवा रोॅ खेती।
हम्में हेकरेॅ छी कर्म योगी॥
धरती पर उपजाय छी।
धान, गहूँम, सरसौं आरो तीखी॥
अंगिका माय रोॅ अँचरा तर बैठी।
देखै छी समुच्चा जहान॥
उतारेॅ नै पारी रहलोॅ छी।
माय दुधोॅ के करजा॥
करजा सधाय लेॅ भिड़लोॅ छी।
कर्मयोगी बनलोॅ छी तोड़ै लेॅ करजा॥
हाथोॅ मेॅ लैकेॅ उड़ाबै छी अंगिका के झंडा।
हम्में सधाबै लेॅ भिड़लोॅ छी माय अंगिका के करजा।