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मारा, लूटा, आग लगा दी वहशी डर के बारे में / बल्ली सिंह चीमा

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मारा, लूटा, आग लगा दी, वहशी डर के बारे में ।
इन शब्दों में बातें होंगी, उजड़े घर के बारे में ।

ना मैं मजनूँ, ना राँझा हूँ और न मिर्ज़ा सहिबाँ का,
मुझ से फिर क्यों पूछ रहे हो, प्रीतनगर के बारे में ।

मस्जिद टूटी, मन्दिर टूटे, टूट गए कानून सभी,
दिल न टूटें, देश न टूटे, सोच इधर के बारे में ।

कितने मारे, कितने घायल, धर्म-सियासत तू ही बोल,
हम क्या बोलें तेरी क़ातिल तीरे-नज़र के बारे में ।

कुछ न होगा गर सोचोगे अपने बारे में 'बल्ली',
सोच रहा हूँ अब सोचूँगा दुनिया-भर के बारे में ।