भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मावस की अँधेरी रातों में नन्हा-सा सितारा काफ़ी है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:32, 4 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=आस क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मावस की अँधेरी रातों में नन्हा-सा सितारा काफ़ी है।
मझधार में कश्ती डूबे तो तिनके का सहारा काफ़ी है॥

मंजिल ना मिले राहें मुश्किल अरमां रूठे पग चल न सके
उस लंबे अकेले रस्ते पर इक साथ तुम्हारा काफ़ी है॥

घनघोर अँधेरा लंबा पथ काँटे पग-पग दुर्बल काया
मन सुस्थिर कर लो तो पथ में नन्हा ध्रुव तारा काफ़ी है॥

किसने पाया किसने खोया जय और पराजय का झगड़ा
हम डिगें नहीं तो जय के हित संघर्ष हमारा काफ़ी है॥

है दिग दिगंत की चाह नहीं हमको सागर से क्या लेना
अग जग की प्यास बुझाने को दरिया का धारा काफ़ी है॥