भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिली अचानक राह बता दो / बलबीर सिंह 'रंग'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:31, 23 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बलबीर सिंह 'रंग' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिली अचानक राह बता दो मंजिल कितनी दूर है।

चले कहाँ के लिए कहाँ से पहुँचे किस संसार में
कोई नहीं किसी की सुनता ऐसे हाहाकार में
अमित अभावों के सागर में झंझाओं का जोर है
लहरों में ज्वारों का गर्जन, नैया है मँझधार में

पतवारों के अंग भंग की दुर्घटना का दोष क्या
तूफानों को चीर दिखा दो साहिल कितनी दूर है।

अंकुर उपजे कल्प वृक्ष के अब बन गये बबूल हैं
उनमें गंध कहाँ से आये जो कागज के फूल हैं
ऐसे भी हैं बहुत बराती शंकर की बारात में
औरों को विषपान कराते बनते मंगल मूल हैं

सहज शांति के प्रस्तावों से डरने वाली भ्रान्तियो
तुम्हें पता क्या नहीं क्रान्ति की हलचल कितनी दूर है।

स्वयं खुल रहे अधिक उनींदे द्वार नयन की कोर के
गाते हैं जागरण प्रभाती पंछी चारों ओर के
बीत रही है रात अंधेरी झांक रही है लालिमा
सचमुच ये आसार सभी हैं आने वाली भोर के

बसुन्धरा नभ की छाती पर चढ़ कर आज पुकारती
कितनी अतिशय निकट पिपासा बादल कितनी दूर है।