भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझे नहीं मालूम, बंधु कब से / ओसिप मंदेलश्ताम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:43, 7 मार्च 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: ओसिप मंदेलश्ताम  » संग्रह: सूखे होंठों की प्यास
»  मुझे नहीं मालूम, बंधु कब से

मुझे नहीं मालूम, बन्धु, कब से
लोग गीत यह गाने लगे
पंख फड़फड़ाएँ अपराधी सुनकर जिसे
औ' निजाम भुनभुनाने लगे

मैं चाहूँ फिर से बस यूँ ही
सिर्फ़ एक बार करना कुछ बात
जलती अग्नि का स्वर सुनना चाहूँ
और दूर ढकेल देना यह रात

घास काटना चाहूँ फिर से मैं
औ' टोप उड़ाना दुखदायी पवन का
अंधेरा बन्द छिपा बैठा जहाँ
फाड़ देना चाहूँ वह बोरा गगन का

ताकि फिर घन्टे-सा बजे रक्त हमारा
और उखड़ी-सूखी घास भी करे इंकार
चाहे एक सदी बाद मिले फिर हमें वापिस
चोरी गए हमारे सारे सपनों का अम्बार

रचनाकाल : 1922