भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुर्दा मौन / आरती मिश्रा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:36, 13 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरती मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारा बोलते जाना अच्छा है
जैसे कि रस्सी बटना, लम्बी सी
अच्छा है समय के लिए भी
तुम्हारा यूँ ही बोलते रहना लगातार

तुम चिल्लाते
चीख़ते
या गालियाँ बकते तो भी अच्छा था

अच्छा नहीं हो सकता, बिल्कुल भी
यह मुर्दा मौन
चुप लगा जाना
हर प्रश्न के उत्तर में तुम्हारा यंत्रवत मुंडी हिलाना
और सोचना-‘बोलने से भला होता क्या है?’