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मुहबत जा दीआ / लक्ष्मण पुरूस्वानी

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यादियुनि जे गुलज़ार गुलशन में
तुहिंजी मुहबत जा दिआ ॿरनि था

जेके आहिन मन में अञां तांई ताज़ा
से गुल तुहिंजा ई महकनि था

तुहिंजो सुहिणो रुप ऐं मिठड़ियूं ॻाल्हियूं
उजरा उजरा दींह मथां चांदनी रातियूं

याद अचण ते रोज शाम जो कदम,
पहिंजे पाण मुहिंजा खॼनि था

कीअं करियां शांत फिज़ा खे
कीअं रोकियां मदमस्त हवा खे

न्यापा खणी पखीअड़ा रोज शाम जो
घर मुहिंजे अचनि था

यादियुनि जे गुलज़ार गुलशन में
तुहिंजी मुहबत जा दीआ ॿरनि था

जेके आहिन मन में अञां ताईं ताजा
से गुलिड़ा तुहिंजा ई महकनि था
गुल, बस तुहिजां ई...