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मेरी चाह उस नज़र में है, कभी है, कभी नहीं है / गुलाब खंडेलवाल

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मेरी चाह उस नज़र में है, कभी है, कभी नहीं है
ये तो चाँदनी है घर में, कभी है, कभी नहीं है

जो कहा मिलेंगे फिर कब, तो हँसा कि राम जाने
ये ज़ुनून मेरे सर में, कभी है, कभी नहीं है

तेरे चाहने से क्या हो, मेरा दिल ही है कुछ ऐसा
इसे चैन उम्र भर में, कभी है, कभी नहीं है

मुझे बख़्श दे कि अब मैं, न क़दम मिला सकूँगा
मुझे होश इस सफ़र में, कभी है, कभी नहीं है

तेरे दिल में तो बसी है, ये महक गुलाब की ही
तू भले ही अब नज़र में, कभी है, कभी नहीं है