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मैं और मेरी परछाई / मुकेश कुमार सिन्हा
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10 वाट के बल्व की हलकी रौशनी
हाथो में काली चाय से भरा
बड़ा सा मग
बढ़ी हुई दाढ़ी
खुरदरी सोच व
मेरी, मेरे से बड़ी परछाई!
है न आर्ट फिल्म
के किसी स्टूडियो का सेट
एवं मैं!
ओह मैं नहीं ओमपुरी
जैसा खुरदरा नायक!
परछाई से मुखातिब
हो कर-
तू कब छोड़ेगा मुझे
'उसने'
'उसकी मुस्कराहट ने'
और 'उसके साथ की मेरी ख़ुशी'
सब तो चले गए...
फफोले आ गए ओंठों पर
मुस्कुरा न पाने की वजह से
पर तू...
रौशनी दीखते ही
मेरे वजूद से निकल पड़ता है
और रौशनी छूटते ही
फिर से
सिमट आता है मेरे आगोश में
मेरे इतने करीब की
समा जाता है मुझमे
एक अहसास की तरह
'मैं हूँ न तेरे साथ'
वजूद मेरा खुरदडा थोडा
और थोडा कड़वा-गरम
जैसे ड्रामेटिक क्लाइमेक्स के साथ
मैं व मेरी परछाई...