भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मोरन की सोरन की नैको न मरोर रही / ग्वाल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:29, 6 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ग्वाल }} Category:पद <poeM> मोरन की सोरन की ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मोरन की सोरन की नैको न मरोर रही,
घोरहू रही न घन घने या फरद की.
अंबर अमल,सर सरिता बिमल भल
पंक को न अंक औ न उड़न गरद की.
ग्वाल कवि चित्त में चकोरन के चैन भए,
पंथिन की दूर भई, दूषन दरद की.
जल पर थल पर,महल अचल पर,
चाँदी सी चमक रही चाँदनी सरद की.