भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मौन ग्रहण कर रटूँ निरन्तर / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:26, 21 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग आसावरी-तीन ताल)

 मौन ग्रहण कर रटूँ निरन्तर, जिह्वासे श्रीराधेश्याम।
 नेत्रोंसे देखूँ न कभी कुछ, रहें दीखते राधेश्याम॥
 कानोंसे सब शब्द त्यागकर, सुनूँ सर्वदा राधेश्याम।
 मनसे सभी प्रपञ्च दूर कर, रहूँ निरखता राधेश्याम॥
 भोग-मोक्षकी चाह मिटे सब, चाहूँ केवल राधेश्याम।
 एकमात्र, बस लगें परम प्रिय मुझको केवल राधेश्याम॥
 मिले उच्च या नीच जन्म, पर रहें सन्ग नित राधेश्याम।
 अतुल अमल सौन्दर्य-सुधा-निधि परम मधुर श्रीराधेश्याम॥