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मौसम पे दोष डालकर निर्दोष हो गये / उर्मिल सत्यभूषण
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मौसम पे दोष डालकर निर्दोष हो गये
कश्ती के कर्णधार जब मदहोश हो गये
सत्ता का ताज पहनकर डूबे नशे में यूं
ललकारते थे जो उसे, खामोश हो गये
सिर धुन रही है बेबसी, लाचारियाँ यहाँ
गूंगे हमारे आज ये आक्रोश हो गये
गो मात खा गये हैं सियासत में हम मगर
अवगुण हमारे गुण हुये, गुण दोष हो गये
होने लगी है जब से अदब में भी साजिशें
संवेदना के खाली सारे कोष हो गये
अरमान थे कि उनके मुखौटे उतार दे
दहशत, कि उनके सामने गुम होश हो गये
जंगल बनी है बस्तियां अब आदमी कहाँ
कुछ शेर हैं कुछ लोमड़ी, खरगोश हो गये
खलती हैं उर्मिल को बहुत ये खेमेबाजियाँ
सब अपनी जय-जयकर के उद्घोष हो गये।