भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यात्रा / विजय किशोर मानव

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:35, 21 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय किशोर मानव |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम व्यस्त रही
अपने घर के काम-काज में
बच्चों में
नींद न पूरी होने की यातना में,
मैं बिलकुल खाली रहा
घर चलाने के लिए
कमाते हुए
रहते हुए
घर में
तुम्हारे बच्चों के साथ,
सोते हुए घर में
जागता रहा,
जाता रहा बार-बार
वर्षों को चीरता
तुमसे हुई पहली मुलाकात तक,
मैं दौड़ते-दौड़ते थक गया
और तुम व्यस्त रहते-रहते
एक ही यात्रा में।