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ये समय रीता घड़ा है / गीता पंडित

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कामना कि
चौखटों को
लाँघकर कैसा खडा है
ये समय रीता घड़ा है

स्वप्न श्वासों
की स्लेटों
पर लिखा हर गीत है
बैठकों में नयन की कब
स्वप्न बिन संगीत है

देख सपनों
को चुराकर
नयन में मोती जड़ा है

झूठ का परचम
बना वह
झूठ को सच कह रहा
आज सत्ता कि नदी में
नग्न होकर
बह रहा

वो धंसाता
है धरा को
स्वयं भी औंधा पड़ा है।