भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

योगी न अती आकिलो दाना न बना दे / बिन्दु जी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:01, 18 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बिन्दु जी |अनुवादक= |संग्रह=मोहन म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

योगी न अती आकिलो दाना न बना दे।
कुछ श्याम बनाना है तो मस्ताना बना दे।
वह आह दे जिससे कि तुझे चाह हो मेरी।
वह दर्द दे मुझको जो भी दीवाना बना दे।
जिन मस्तों की नजरों में तू हरदम है समाया।
बस मुझको इन्हीं नजरों का मस्ताना बना दे।
इस दिल को मये इश्क का मयखाना बना दे।
आँखों के हरेक ‘बिन्दु’ का पैमाना बना दे।