भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंग जमने न दिया बात को चलने न दिया / 'ज़हीर' देहलवी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:17, 25 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='ज़हीर' देहलवी }} {{KKCatGhazal}} <poem> रंग जमने ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
रंग जमने न दिया बात को चलने न दिया
कोई पहलू मेरे मतलब का निकलने न दिया
कुछ सहारा भी हमें रोज़-ए-अज़ल ने न दिया
दिल बदलने न दिया बख़्त बदलने न दिया
कोई अरमाँ तेरे जलवों ने निकलने न दिया
होश आने न दिया ग़श से सँभलने न दिया
चाहते थे के पयामी को पता दें तेरा
रश्क ने नाम तेरा मुँह से निकलने न दिया
शम्मा-रू मैं ने कहा था मेरी ज़िद से उस ने
शम्मा को बज़्म में अपने कभी जलने न दिया