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राजा जो आईनो / हरीश करमचंदाणी

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राजा गुस्से में आ
हुन चाहियो तणणण न वसे अजु मींहुं
पर वसियो मींहुं सॼो ॾींहु!
राजा गुस्से में आ
हुन जी मरिज़ी हुई
त रहे ऊंदहि
पर सिजु उभिरियो
तॾहिं बि
हुन जी इच्छा हुई त हुजे
मसाण जहिड़ी ख़ामोशी
पर झिरिकी ॻाईन्दी रही
सुबुह, शाम ऐं राति

राजा खे घुरिजे प्रजा जी सलामी
सभिनी कन्ध झुकाया
ॿार कन्दा रहिया रांदि

राजा गु़स्से में
छितो थी वियो आ
केरु नथो मञे
सन्दसि हुकुम
गु़लामनि खे छॾे।
राजा खे पइजी वेई आहे समक
पंहिंजी ताक़त
ऐं
आईन्दे जी पिणि।