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राधिका दौड़ द्वार तक आई / गुलाब खंडेलवाल

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राधिका दौड़ द्वार तक आई
श्याम घटा को देख, श्याम की छवि मन में लहराई

वायु-लहरियों ने आ आ कर
मधुर थपकियाँ दी कपाट पर
बूंदों में प्रिय पग ध्वनि बाहर
सहसा पड़ी सुनाई

बोला तभी पपीहा वन में
वंशी-ध्वनि सी पड़ी श्रवण में
चमक तड़ित की, दूर गगन में
पीताम्बर बन छाई

उठा मृदंग-नाद सा घन से
मोर मुकुट झलका जलकण से
लगी अश्रु की झड़ी नयन से
मिलने को अकुलाई

राधिका दौड़ द्वार तक आई
श्याम घटा को देख, श्याम की छवि मन में लहराई