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राम रस पीवत ही मर जैहै / संत जूड़ीराम

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राम रस पीवत ही मर जैहै।
काम क्रोध अरु कामनी जे पुनि अवश नतैहै।
विमल विराग राख अपने उर भगत मूल मतपैहै।
काछौ काछ नाच अब सांचो राम रतन मिलै है।
चित चेताय संपात सकल अध ईंधन स्वाह नसैहै।
पावक ज्ञान विखम बलेगी कर्म भस्म हू जैहै।
तन मन सांच सुध तम डोली दृढ़ विश्वास बहैहै।
डाहु डंभ पाखंड नसावन जब हरि हिये बसैहै।
पीवत प्रेम मगन हो प्याला जुग-जुग त्रखा बुझैहै।
जूड़ीराम नाम के सुमरे कोटन ब्याध न रैहै।