भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रूह में घोर अंधेरे को उतरने न दिया / राम रियाज़

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:31, 29 मार्च 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रूह में घोर अंधेरे को उतरने न दिया
हम ने इंसान में इंसान को मरने न दिया

तेरे बाद ऐसी भी तन्हाई की मंज़िल आई
कि मिरा साथ किसी राहगुज़र ने न दिया

कौन था किस ने यहाँ धूप के बादल बरसाए
और तिरे हुस्न की चाँदी को निखरने न दिया

प्यास की आग लगी भूख की आँधी उट्ठी
हम ने फिर जिस्म का शीराज़ा बिखरने न दिया

ज़िंदगी कशमकश-ए-वक़्त में गुज़री अपनी
दिन ने जीने न दिया रात ने मरने न दिया

अश्क़ बरसाए कभी ख़ून बहाया हम ने
ग़म का दरिया किसी मौसम में उतरने न दिया