भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लटक रये फूंदना बातों के छुटक रये फूंदना बातों के / बुन्देली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:49, 12 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लटक रये फंुदना बातों के छुटक रये फंुदना बातों के।
गोरी घर में गेहूँ कितनौ है गोरी चावर घर में कितनौ है।
गोरी घर में सोनौ कितनौ है गोरी घर में चाँदी कितनी है।
दे आऊँ बहिन घर भात।
लटक रये फुंदना ...
राजा घर में गेहूँ नैक नहीं राजा घर में चाँवर नैक नहीं
राजा घर में सोनौ नैक नहीं राजा घर में चाँदी नैक नहीं,
न देओ बहिन घर भात।
लटक रये फुंदना ...
गोरी घर में गेहूँ कितनौ है गोरी घर में चाँवर कितने हैं,
गोरी घर में सोनों कितनो है गोरी घर में चाँदी कितनी है
दे आऊँ बबुल घर भात।
लटक रये फुंदना ...
राजा घर में गेहूँ खूब धरौ राजा घर में चाँवर खूब धरे,
राजा घर सोनौ खूब धरौ राजा घर में चाँदी खूब धरी
दे आओ बबुल घर भात।
लटक रये फुंदना ...
राजा गाड़ी भर कै चले भये दै आये बहिन घर भात।
लटक रये फुंदना ...
राजा तुमसे कपटी एक नहीं राजा तुमसे छलिया सुने नहीं
दै आये बहिन घर भात।
लटक रये फुंदना ...
गोरी तुमसी ठगनी सुनी नहीं गोरी तुमसी कपटिन एक नहीं
कहुँ सुनौ बबुल घर भात।
लटक रये फुंदना बातन के छुटक रये फुंदना बातन के।