भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लिखना जरूरी लगा मुझे / रविकान्त

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:19, 28 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकान्त }} {{KKCatKavita}} <poem> यदि मेरी समस्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि
मेरी समस्याओं का समाधान न होता
या फिर
राहों के जंगल में
मुझे युक्ति-युक्त मार्ग न मिलता
तो मेरा
शब्दों की बस्ती में उठना-बैठना
किसी भी लालच में पड़ कर
छूट गया होता

मैं लिखता हूँ
इसलिए नहीं कि मैं लिखना चाहता हूँ,
मैं न लिखता
यदि लिखने से
मुझे मेरे प्रश्नों के हल न मिले होते

लिखना जरूरी लगा मुझे
एक (?) बड़े जीवन को
उसके छोटेपन से मुक्त करने के लिए|
आँसुओं को बचाने के लिए
दर्द को समेटने के लिए
और
खुशियों को
उनका अधिकार दिलाने के लिए
- लिखना जरूरी लगा मुझे
जीवन के अँधेरे अध्यायों में चलते हुए
मैं उसे मेटना नहीं चाहता
उन्हें पढ़ कर
जीवन को दो कदम भर होने से
बचाना चाहता हूँ

मैं जानता हूँ, कि
मैं असुरक्षित हूँ यहाँ
पर
सुरक्षा की किलेदारी भी
नहीं चाहिए मुझे,
कुछ खिड़कियाँ
और उनके बाहर का
पूरा आसमान
जरूरी है
मेरे जीने के लिए

चूँकि स्वतंत्रता ही
पल-पल का उद्देश्य है
इसलिए
कोई हथियार उठा कर चलना
जरूरी लगा मुझे

झुकने नहीं देना है
वे सभी चीजें
जो तनी हुई अच्छी लगती हैं
जैसे सिर, शब्द या परचम

मैं लिखता हूँ, क्योंकि
लिखना बिगुल बजाना है
लगातार फहराते रहने का नाम है
- लिखना