भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लुक्खी के घोॅर / दिनेश बाबा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:28, 11 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश बाबा |अनुवादक= |संग्रह=हँसी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फुदकल फुदकल आबै लुक्खी
धूप देखि बौराबै लुक्खी
पत्ता झड़लोॅ छै ढेला सें
थर थर थर थर्राबै लुक्खी
लपकी झपकी फोॅल, तोड़ी केॅ
कुतरी कुतरी खाबै लुक्खी
देखभो कभी उदास नै होकरा
मतर बड़ी धबराबै लुक्खी
धोॅर समुच्चे सुन्दर लागै
सब के मोॅन लुभाबै लुक्खी
गाछ ओढ़ना गाछ बिछौना
गाछे घोॅर बनाबै लुक्खी
कटल्हौं गाछ, बिलल्ला होय कॅे
घोॅर बिना मर जाबै लुक्खी