भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोग / रणजीत

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:27, 16 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत |अनुवादक= |संग्रह=बिगड़ती ह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने घर के सामने ऊँचे उठा कर
सड़क को नाली बनाने पर तुले हैं लोग।
भोग का, व्यापार का पर्याय तो पहले भी था, अब
प्यार को गाली बनाने पर तुले हैं लोग।
पत्नियाँ देती नहीं हैं सालियों-से सुख, तभी तो
पत्नी को साली बनाने पर तुले हैं लोग।
रहीम को रसखान कर, तुलसी बना कबीर को
मख़्दूम को हाली बनाने पर तुले हैं लोग।
काले बुर्के डाल कर गौरांगनाओं के मुखों पर
जिन्दगी काली बनाने पर तुले हैं लोग।
मुजरिमों को वोट दे दे कर चुनावों में
गुलख़ोर को माली बनाने पर तुले हैं लोग।