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लोग क्यों नज़रें छुपाने लग गये / डी. एम. मिश्र

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लोग क्यों नज़रें छुपाने लग गये
या कहूँ दामन बचाने लग गये

हम तो समझे थे कि यह भी प्यार है
तीर वो हँसकर चलाने लग गये

हुस्न की दौलत तो उनके पास थी
दिल मेरा वह क्यों चुराने लग गये

कल तलक थे जो ककहरा सीखते
ज्ञान अब हमको बताने लग गये

जेा कटोरा ले के चलते थे कभी
वेा भी अब ठेंगा दिखाने लग गये

जल नहीं जिन बादलों में बूंद भर
शोर वो ज्यादा मचाने लग गये