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शब्द नाच / निदा नवाज़

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कल मेरे शहर में
शब्दों का नाच आरम्भ हुआ
हर शब्द ने
अपना परिचय फैंक कर
एक मुखौटा पहना
सत्य ने झूठ की
फटी चादर ओढ़ ली
और झूठ को सत्य का
सम्मान मिलने लगा
इसी बीच वहम का नाग
मेरे कान में सुरसुराया
मुखौटे उतारने की
प्रतीक्षा नहीं करना
कि मुखौटे शब्दों के
चेहरों से चिपक कर
इनका पर्याय बन गये हैं।