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सच को कैसे ढोना जी / अश्वनी शर्मा

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सच को कैसे ढोना जी
चुभता कोना-कोना जी।

खाना-पीना, जगना-सोना
ये होना, क्या होना जी।

धुआं-धुआं अहसासों पलना
कतरा-कतरा खोना जी।

समय-समय पर आना-जाना
किसका रोना-धोना जी।

आसमान में इक उड़ान हो
क्या पाना-क्या खोना जी।

जीना नागफणी का जंगल
सपनों को क्या बोना जी।

जागें तो जीवन पर सोचें
सोना है तो, सोना जी।

आंख मूंदकर देखेंगे तो
जीवन सपना सलोना जी।

एक मदारी सभी जमूरे
जीवन जादू-टोना जी।