भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँझ / गाब्रिएला मिस्ट्रल / सुमन पोखरेल

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:40, 20 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गब्रिऐला मिस्त्राल |अनुवादक=सुम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पग्लिरहेझैँ लाग्छ मेरो हृदय
मैनबत्तीजसरी बिस्तारैबिस्तारै;
मदिरा हैन,
बाक्लो तेल बगिरहेझैँ लाग्छ नशामा मेरा।
भागिरहेझैँ लाग्छ
जीवन
मृगशावकजसरी मन्दमन्द
बिस्तारैबिस्तारै।