भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सिर्फ़ मेरा ही नहीं था ये शहर तेरा भी था / कुमार अनिल

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:47, 28 दिसम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सिर्फ मेरा ही नहीं था ये शहर तेरा भी था
तूने लूटा खुद जिसे ऐ दोस्त घर तेरा भी था

काट डाला तूने जिसको किस कदर शादाब था
छाँव देता था मुझे तो वो शज़र तेरा भी था

एक थी मंजिल हमारी एक ही था रास्ता
मैं चला था जिस सफ़र पे वो सफ़र तेरा भी था

कल क़ी आँधी ने बुझा डाले दिये जो, उनमे ही
था मेरा लख्ते जिगर, नूरे नजर तेरा भी था

राहे रंजिश का इशारा एक ही उंगली का था
जिसने भटकाया मुझे वो राहबर तेरा भी था

एक दहशत क़ी गुफा से मै न बाहर आ सका
डर अगर अपना इधर था, गम उधर तेरा भी था