भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुख-क्षण / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:49, 8 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=अरी ओ करुणा प्रभाम...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह दु:सह सुख-क्षण
मिला अचानक हमें
अतर्कित।

तभी गया तो छोड़ गया
यह दर्द अकथ्य, अकल्पित।

रंग-बिरंगी मेघ-पताकाओं से
घिर आया नभ सारा :
नीरव टूट गिर गया जलता
एक अकेला तारा।

साउथ एवेन्यू, नयी दिल्ली, 6 दिसम्बर, 1956