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सूने सारे ड्योढ़ी-द्वारे / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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सहमा दिन है
सूने सारे ड्योढ़ी-द्वारे

चुप हवाएँ हैं - घना धुआँ बस्ती को घेरे
रहे रात-भर अगियावेतालों के फेरे

झुलसे देवा
पूजाघर भी उनने जारे

मरी मछलियाँ - दिन-भर बरसी राख शहर में
सुएज अंधा हुआ - अँधेरा है दुपहर में

उधर मछेरा
चुप बैठा है नदी-किनारे

नदी-घाट पर बरगद के साये भी झुलसे
चीखें आती रहीं सुबह तक पिछले पुल से

जल के सोते
सभी हुए थे पल में खारे