भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूरत छुपा कर चला है कहाँ तू / गोविन्द राकेश

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:50, 21 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोविन्द राकेश |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूरत छुपा कर चला है कहाँ तू
मुझसे दगा कर चला है कहाँ तू

मुश्किल नहीं कोई नज़रें मिलाना
नज़रें चुरा कर चला है कहाँ तू

तब तो कहा था कि कुछ भी करूँगा
बातें बना कर चला है कहाँ तू

ख़ामोश रहते मेरा साथ मिलता
सबको बता कर चला है कहाँ तू

चुपके किसी से मिला लीं नज़रें
दिल को जला कर चला है कहाँ तू