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सूरत छुपा कर चला है कहाँ तू / गोविन्द राकेश
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सूरत छुपा कर चला है कहाँ तू
मुझसे दगा कर चला है कहाँ तू
मुश्किल नहीं कोई नज़रें मिलाना
नज़रें चुरा कर चला है कहाँ तू
तब तो कहा था कि कुछ भी करूँगा
बातें बना कर चला है कहाँ तू
ख़ामोश रहते मेरा साथ मिलता
सबको बता कर चला है कहाँ तू
चुपके किसी से मिला लीं नज़रें
दिल को जला कर चला है कहाँ तू